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जब तुम मिले / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
एक पर्वत के शिखर का तप
ढहा
जब तुम मिले l
शाल वन के
घने सायों से तुम्हारे
केश
कजरारे,
भाल
जैसे ग्लेशियर पर
धूप के प्रतिबिम्ब
सोनारे;
पारदर्शी झीलिया
आँखें
तुम्हारी देखकर
एक दर्पण से जुड़े
ज्यूँ दृष्टि के सौ
सिलसिले l
खिलखिलाए तुम
लगा
ज्यूँ ढूध के झरने
कहीं फूटे,
तुम चले तो
खुशबुओं के
फूल से
रिश्ते सभी टूटे;
हरी रेशमी दूब सी
छुअनें
तुम्हारी बाँधकर
रास्ते भर
मोंगरे का फूल बनकर
हम खिले l