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जब दिन लौट रहा था / अदनान कफ़ील दरवेश

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जब दिन
पश्चिम के आकाश में
तेज़ी से लौट रहा था
मैं हज़ारों मील दूर
तुममें लौट रहा था

तुम
जो मेरा घोंसला थीं
एक थके पक्षी का घोंसला

मेरा
लिबास थीं तुम
जिसमें मैं समा रहा था

दक्षिण के मलिन आकाश में
मेरी प्रार्थनाएँ
गुत्थम-गुत्था हुई जाती थीं
ईश्वर का मुख
विस्मय में खुला था
क्योंकि वो पश्चिम के आकाश में बैठा था
और मेरा रुख़
उसके मुताबिक नहीं था !

(रचनाकाल: 2016)