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जब देखा सौंदर्य / त्रिलोचन

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जब देखा सौंदर्य, तुम्हें पर चलते पाया


खिली व्योम में उषा, चाँदनी

बिजली, घटा सलोनी

सूरज, चाँद, पंख पर खगकूल

सस्वरता अनहोनी

कभी कहीं है कभी कहीं है धूप और छाया


सिर के ऊपर झूके पेड़ में

खिल खिल आई कलियाँ

बिहँसे फूल बस गई धरती

जागीं भ्रमरावलियाँ

केवल दो दिन केवल दो दिन की है यह माया


पास पैर के इस पृथ्वी की

फूल भरी हरियाली

ऋतु ऋतु में कुछ और दिखाई

देती है छवि वाली

मूक हर्ष का इन प्राणों में आवाहन आया


जीव जगत की गति बदली है

शोभा नई निराली

वह सजीवता आज कहाँ है

आँखों को कल वाली

निर्मम भी तो ममता के मृदु बंधन में आया


कल जिस ओर चकित देखा था

आज शेष है रेखा

वह गायक खग कहाँ उड़ गया

कहाँ गई शशिलेखा

प्राणों में आनन्द मूक अभिनन्दन भर लाया


(रचना-काल - 18-08-49)