भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब भी मिलो करता है वो फिर-फिर वही बातें / ओम प्रकाश नदीम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब भी मिलो करता है वो फिर-फिर वही बातें ।
कुछ हद भी है कब तक सुनें आख़िर वही बातें ।

बातिन<ref>अन्तस</ref> के तगय्युर<ref>परिवर्तन</ref> की भनक तक नहीं मिलती,
लहजा है वही और बज़ाहिर वही बातें ।

बेटी के लिए ढूँढ़ने निकला था, वो रिश्ता,
घर-घर मिले उसको वही ताजिर<ref>व्यापारी</ref> वही बातें ।

जो बातें बना देती हैं ’गौतम’ को पयम्बर<ref>ईश्वरदूत</ref>,
साबित मुझे कर देती हैं काफ़िर<ref>नास्तिक</ref> वही बातें ।

कुछ भी नहीं बदला है पुजारी के अलावा,
भगवान वही है, वही मन्दिर, वही बातें ।

माज़ूर<ref>विवश</ref> है शायद दिल-ए-इन्सां की समाअत<ref>सुनने की क्षमता</ref>,
दुहराते हैं हर युग में मुफ़क्किर<ref>विचारक</ref> वही बातें ।

शब्दार्थ
<references/>