भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब ये जीवन फिर पायेंगे / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जब ये जीवन फिर पायेंगे
कभी कहीं तो चलते चलते पथ पर मिल जायेंगे

पलकें झुका फेर मुँह लोगी
देखा अनदेखा कर दोगी
या मन में कुछ हलचल होगी
लोचन भर आयेंगे

जैसे कोई याद पुरानी
जाग उठेगी पीर अजानी
क्या न प्रेम की यही कहानी
फिर से दोहरायेंगे

अथवा किसी अजान देश में
समवय समरूचि भिन्न वेश में
लिए ह्रदय में प्रीति शेष में
केवल पछतायेंगे

जब ये जीवन फिर पायेंगे
कभी कहीं तो चलते चलते पथ पर मिल जायेंगे