जब हम साथ हैं मेरे बेटे / कल्पना पंत
उन दिनों जब तुम जूते की लेस बाँधना सीखकर खुश हो रहे थे
मैं अतीव उत्साह में थी।
तुम फुटबॉल के रेनबो शाट लगा मुझे दिखाते थे
मेरा दिल बल्लियों उछलता था
तुम सौ बार मुझसे घर में क्रिकेट खे लते बालिंग करवाते थे
हर दूसरी बाल वाइड हो जाती थी
और सौ की संख्या बढ़कर तीनसौ हो जाती थी
पर गिनती में सौ भी नहीं गिनी जाती थी
मैं थकती थी पर आज सोचती हूँ कि
कितनी खुशी भरी थकान थी
कि जब-जब बाल से दीवारों का पलस्तर
खिड़की, सेंटर टेबल या डायनिंग टेबल का कांच टूटा
मेरे भीतर हमेशा झुंझलाहट के बावजूद कुछ जुड़ा
आज मैंने फिर अनुशासन को थोड़ा
अवकाश दिया
और स्कूल जाते अपने ग्यारहवीं कक्षा के बच्चे के जूते की लेस बाँधी
जिसे छठी कक्षा में जि़द करने पर
मैंने घंटे भर गेट के बाहर कर दिया था।
मुझे महसूस हुआ
प्यार ही अनुशासन है
नर्सरी कक्षाओं में तुमने एक बार कहा
मम्मा दीक्ति कहती है आइ लप्पा
आइ लप्पा बेटे!