भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जय कृष्ण कृपाल भयो जी / बहिणाबाई
Kavita Kosh से
जय कृष्ण कृपाल भयो जी
नहीं कीये जप तप दान
नै गृही ब्रह्मन पूजन
कीया भूमि नहि गोदान॥
तुम क्यौं प्रगट बयो कहा जानो
अर्चन वंदन नहिं कछु पायो
हाय अचंवा मान॥
अन्न दीयो तब या
रसि नहि देवन पूजो भाव
तीरथ यात्रा कछु नहीं जोड़ी
कहा भयो नवलाव॥
वनधारी और निरबाना है
पत्र लिखावत जान
नंगाह पांव, नंगा देहहि
बन बन जावत रात।
परबत मांहे जोगी होकर
छोड़ दिया संसार
धूमरपान और पंचाग्नी साधन
बैठे जल की धार॥
बहिनी कहे कहा जलम का
संचित प्राप्त भये इस बेला
चार भुजा हरि मुझ को दिखाया
ये ही कहो घन नीला॥