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जल की कविता / प्रकाश
Kavita Kosh से
मैं जल के तल में उतर गया
वहाँ जल नहीं जल का शब्द था
मैं जल के शब्द में उतर गय
वहाँ जल के शब्द में स्वयं जल था !
०००
मैं जल को उसके नाम से पुकारता था
मैं उसके मुख पर जल फेंकता था
जल के चेहरे पर हरक़त होती थी
वह धीरे-धीरे नींद से बाहर निकलता था
मैंने जल को उसके नाम से पुकारता था
उसके प्राण लौटते थे !
०००
मैंने जल को उच्चरित किया
भागकर मेरी जिह्वा पर रस चला आया
मैं रस में डूबा हुआ था
बाहर जल का छिलका पड़ा हुआ था !
०००
मैंने जल में झाँका
वहाँ जल से जल की रोशनी लिपटी हुई थी
मैं एक युगल को अलग-अलग नहीं पुकार सकता था
मैंने आवाज़ दी -- 'जल-रोशनी !'