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जवान लड़की की लाश / नेहा नरुका

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लाश ! लाश ! लाश !
छुन्ने मामा के खेत पर लाश !
मर्द खेत की तरफ़ जानेवाले कच्चे रास्ते पर भागने लगे
औरतें एक जगह इक‌ट्ठी होकर खुसुर-फुसुर करने लगीं

बच्चे खेल रहे थे
उन्हें लगा यह भी कोई नया खेल है
वे भी भागने लगे
भागते-भागते मर्द आगे निकल गए
बच्चे पीछे रह गए

बच्चे पूरी ताक़त लगाकर दौड़ रहे थे
पर आख़िर थे तो बच्चे ही

रास्ते में उन्हें तरबूज के खेत मिले
खरबूज के खेत मिले
पके आम के पेड़ मिले
पर उन्होंने किसी भी फल को ललचाकर नहीं देखा
वे, बस, भागते रहे

उन्हें लाश देखनी थी
उन्हें लगा लाश आसमान में उड़ने वाले हवाईजहाज़ की तरह होगी
उन्हें लगा लाश आसमानी झूले की तरह होगी
उन्हें लगा लाश तेज़ धूप, तेज़ बारिश या फिर तेज़ हवा की तरह होगी

थोड़ी देर बाद वे अपने लक्ष्य तक पहुँच गए
परती पड़े एक खेत पर एक जवान औरत की लाश पड़ी थी
उसने नींबू-से रंग का एक सुन्दर सलवार सूट पहना हुआ था
उसके माथे पर एक छोटी-सी बिन्दी थी
उसके हाथ-पैर के नाख़ूनों में मरून रंग की नेलपॉलिश लगी थी
जो आधी-आधी छूटी थी

उसने पैरों में बिछिया नहीं पहनी थी
उसने हाथों में काँच की चूड़ियाँ नहीं पहनी थीं
मर्दों ने इससे तय किया — जवान लड़की की लाश है

बच्चे देखने लगे लाश का मुँह न काला था, न भूरा

बच्चे देखने लगे लाश के मुँह पर न रोने का भाव था, न हँसने का
बच्चे देखने लगे लाश के गले पर सूखा हुआ ख़ून था
बच्चे देखने लगे लाश के पास एक मैली-सी चप्पल थी

बच्चे डर गए — तो लाश मम्मी, बुआ, चाची, दीदी… की तरह होती है !

बच्चे भाग आए
और अपनी-अपनी माँओं की गोद में दुबक गए
उन्होंने मन ही मन तय किया
अब कभी नहीं जाएँगे लाश का खेल देखने…

क्या देखा ?
क्या देखा ?

बच्चे एक स्वर में बोले —
‘जवान लड़की की लाश’

मार डाला-फेंक डाला
औरतें आपस में बोलीं —
किसने मारा?
कोई बोली — बाप ने
कोई बोली — भाई ने
कोई बोली — जीजा ने
कोई बोली — प्रेमी ने

कहाँ मारा ?

कोई बोली — रेल में मारा
कोई बोली — घर में मारा
कोई बोली — बाग़ में मारा

कहाँ की थी ?

कोई बोली — गाँव की थी
कोई बोली — शहर की थी

औरतें देर तक लाश का गीत गाती रहीं
बच्चे लाश का गीत सुनते-सुनते सो गए

उन्हें फिर ख़्वाब भी आए
तो जवान लड़की की लाश के आए ।