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जवानी और बुढ़ापा / रामधारी सिंह "दिनकर"

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(१)
जो जवानी में नहीं रोया, उसे बर्बर कहो,
जो बुढ़ापे में न हँसता है, मनुज वह मूर्ख है।

(२)
जब मैं था नवयुवक, वृद्ध शिक्षक थे मेरे,
भूतकाल की कथा गूढ़ बतलाते थे वे।
मैं पढ़ने को नहीं, वृद्ध होने जाता था,
आग बुझा कर शीतल मुझे बनाते थे वे।
पर, अब मैं बूढ़ा हूँ, शिक्षक नौजवान हैं,
उन्हें देख निज सोयी वह्नि जगाता हूँ मैं।
भूत नहीं, अब परिचय पाने को भविष्य का
यौवन के विद्या-मन्दिर में जाता हूँ मैं।