भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जवाब / शिवकुटी लाल वर्मा
Kavita Kosh से
तुम न दिन की तरह निकले
न फूल की तरह खिले
रजत-रात की तरह किसी दिल में महके भी नहीं
क्या जवाब है तुम्हारी आत्मा में उनके लिए
जो दिन का इन्तज़ार कर रहे हैं
फूल के खिलने की बाट जोह रहे हैं
रजत-रात की धड़कनों को
मुरदा-दिलों में सुनने को बेचैन हैं
पर जो दब गए हैं भरी-जेबों के अन्धेरों में ।