जवाहर जयन्ती (14 नवम्बर) / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
आज दिवस वह महाशक्ति का जब अवतरण हुआ था।
दो निराश हृदयों में नवसुख का संचरण हुआ था॥
इस धरती पर नवप्रभात की नई किरण थी फूटी।
रंकों ने मिल कर मानो थी जीवन की निधि लूटी॥
सच तो है यह, थी स्वदेश की सोई किस्मत जागी।
मिला जिसे गौरव, यह दिन भी है कितना बड़भागी॥
लाल जवाहर से माँ की भर गई गोद थी सूनी।
नई चमक पाकर मोती की आब हुई थी दूनी॥
गर्वित था घर के प्रांगण का जगमग कोना-कोना।
लुटा रहे थे सूर्य-चांद स्वागत में चाँदी-सोना॥
पुलकित हो विकसित गुलाब ने पथ में पलक बिछाई।
मीठे स्वर में गूंज उठी थी भँवरों की शहनाई॥
भटकी मानवता को मानो था मिल गया सहारा।
उदित हुआ फिर मातृभूमि का था सौभाग्य सितारा॥
ऐसी शक्ति असीम, न जिसकी थाह पा सका कोई।
रोक न जिसके अटल ध्येय की राह पा सका कोई॥
था अदम्य साहस, जिसकी वाणी में विद्युत-बल था।
महामनीषी होकर भी शैशव की भाँति सरल था॥
आजीवन जिसने संघर्षों से ही नाता जोड़ा।
छोड़ी अपनी आन नहीं, आनन्द भवन को छोड़ा॥
पथ की बाधाओं से जिसने हँस कर होड़ लगाई।
डट कर प्रबल विरोधों में भी अपनी राह बनाई॥
राष्ट्र देवता के चरणों का पावन परम पुजारी।
व्रत पालन में जिसने अपनी हिम्मत कभी न हारी॥
काट गुलामी की जं़जीरें माँ को मुक्त बनाया।
भारत का यश-केतु अखिल भू मण्डल पर फहराया॥
अंतिम साँसों तक भी अपने आदर्शों को पाला।
सुधामयी वाणी से मृतकों में जीवन भर डाला॥
आज हमारे बीच नहीं वह रहा जवाहर प्यारा।
सब कहते हैं छूट गया माँझी से साथ हमारा॥
लेकिन मैं कहता हूँ वह तो मरा नहीं जीवित है।
दीप-शिखा उसके आदर्शों की अब भी दीपित है॥
मार्ग दिखाता हमको उसके जीवन का हर क्षण है।
ऐसे वंद्य देव को कवि का बारम्बार नमन है॥