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ज़ख़्मों की रोशनाई / विमल कुमार

कविता केवल शब्दों में नहीं लिखी जाती
लिखी जाती है वह
कभी किसी के ज़ख़्म की रोशनाई से
कभी किसी के
दर्द की परछाईं से