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ज़मीर / रेशमा हिंगोरानी
Kavita Kosh से
मुझे हैरत तो है,
पर कुछ ख़ुशी भी है यारों!
अभी कुछ खूने-जिगर<ref>दिल का खून</ref> और बहा सकता हूँ!
अभी ताक़त बची है वार उनके सहने की,
अभी हिम्मत बची है ज़ुल्म से टकराने की,
ज़रा कमज़ोर पड़ रहे थे हौंसले<ref>हिम्मत</ref> अपने,
मगर फौलाद<ref>लोहा</ref> को भी अब मैं मात दे दूँगा!
मुझे भुला के उन्हें कुछ भी न होगा हासिल…
इसी दुनिया का मैं,
सोया ज़मीर<ref>अंतरात्मा</ref> हूँ यारों!
शब्दार्थ
<references/>