भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़रूरी है / चंद्र रेखा ढडवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम हारो नहीं
कमज़ोर न पड़ो
इसके लिए ज़रूरी है
कि दु:ख के
अवमानना के घृणा के
धनीभूत क्षणों में
तुम नितांत अकेले हो
याद रहे