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ज़हरीला धुआँ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
नज़्में भी चीख़तीं हैं
अपने जिस्म की
परछाई देख
कितना ज़हरीला था
वो धुआँ
जो तुम उगलते रहे....!!