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ज़िद्दी पैर / प्रेमनन्दन
Kavita Kosh से
'उतने पैर पसारिए जितनी चादर होय'
की लोकोक्ति को
अपने पक्ष में खड़ा करके
चादर छोटी ही होती रही
पैरों से हमेशा!
बाहर न निकल जाएँ
चादर से
इस कोशिश में
कई-कई बार कटना पड़ा पैरों को
चादर में अँटने के लिए।
खुली चुनौती है :
जितनी छोटी होना चाहे,
हो जाए चादर
पैर भी कम ज़िद्दी नहीं हैं!