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ज़िन्दगी का जमाल देखा भी / संजू शब्दिता
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी का जमाल देखा भी
मौत का मर्म ख़ूब समझा भी
बचपना तो अभी गया भी न था
जाने कब आ गया बुढ़ापा भी
जब तलक ज़िन्दगी समझते हम
मौत का आ गया बुलावा भी
शब्द कुछ रह गए ज़हन में ही
कुछ को औराक़ पर उतारा भी
उम्र सस्ते में खर्च कर डाली
हाथ आया नहीं ख़सारा भी
जमाल - खूबसूरती
औराक़ - पृष्ठ
ख़सारा - हानि