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ज़ीस्त को यूँ भी रायगाँ रक्खा / अनीता मौर्या

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ज़ीस्त को यूँ भी रायगाँ रक्खा,
दर्द का दिल में कारवाँ रक्खा,

तेरी चाहत को मार कर ठोकर,
ख़ुद से भी वास्ता कहाँ रक्खा,

इक मुअम्मा बना के लफ़्ज़ों से,
तुमने सबकुछ धुवाँ -धुवाँ रक्खा,

बारहा ठोकरें मिली उसको,
हमने दिल को जहाँ - जहाँ रक्खा...