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ज़्यादा अलग किताबें होती हैं / नीलोत्पल

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एक-न-एक दिन हम मकान बनाते हैं
लेकिन यह मकान ढहाए जाने से ज़्यादा अलग नहीं

ज़्यादा अलग सिर्फ़ प्रेम होता है
ज़्यादा अलग भूख भी होती है
अंधकार ज़्यादा अलग नहीं होता

हम मिट्टी से ज़्यादा अलग नहीं
आग से, पानी से
उन हवादार कमरों से
जिनमें हमारी आवाज़ें टकराती हैं
विस्फुरण के लिए

हम अलग नहीं रोटी से
नमक और मृत्यु से भी अलग नहीं
शब्द और तस्वीरें भी स्मृति़यां हैं हमारी

ज़्यादा अलग वह बांस है जो अपनी
स्मृतिहीनता में
कभी बांसु़री तो कभी मृत्यु शय्या के लिए
तैयार है चुपचाप

ज़्यादा अलग किताबें होती हैं
न चाहने के बावजूद दखल देती हैं
नींद भरी रातों में
एक सपना जो चित्रपट पर बिखर जाता है
हम ज़्यादा उसके बाहर नहीं