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जागने का लुत्फ़ / शहरयार
Kavita Kosh से
तेरे होठों पे मेरे होठ
हाथों के तराज़ू में
बदन को तोलना
और गुम्बदों में दूर तक बारूद की ख़ुशबू
बहुत दिन बाद मुझको जागने में लुत्फ़ आया है।