भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जागा जग / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
सुबह-सुबह
एक बच्चा बेच आया घरो-घर
ढेर से अखबार
सुबह-सुबह
एक बच्चा देख आया बागीचों में
हँसते हुए सुर्ख गुलाब
सुबह-सुबह
एक बच्चा दौड़ आया
मैदान में ताकत भर तेज
सुबह-सुबह
एक बच्चा कर आया दर्ज चेतावनी
टी.वी. पर नाटो के विरूद्ध
सुबह-सुबह जागा जग कई बरस बाद