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जागो मेरे देश / अमरेन्द्र

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अब तो जागो देश, दशानन जागा है
दसो दिशाओं की आँखों में भय का कुहरा
क्रूर काल के कर में काल कसा-सा मुहरा
न चन्दन का वृक्ष, संदेशा, न कागा है ।

अब तो जागो देश, दुशासन गाली देता
फूट पड़ा है पाप किसी कुकृत्य-कुफल-सा
और शांति-संवाद लिए है कृष्ण विकल-सा
फसा कर्ण का भाग्य ! कौन यह ताली देता ?

अब तो जागो देश, हिमालय पर हलचल है
घन के बीच छुपा जाता है सूर्य सुदर्शन
रुके हुये रथ के चक्के का घर्घर घन-घन
पांचजन्य है मौन, भुजाओं का भी बल है ।

जागो मेरे देश, विश्व ले करवट जागे
तुमको ही तो चलना है सबके ही आगे ।