जागोॅ हे ग्रामदेव / भाग 3 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
”हद भेलै
अपना कन
कवि ही तेॅ
कहलैलै
ऋषि-मुनि
बात कहै
गुनी-गुनी
जेकरा सें
टोलै नै
गामे नै
शहरे नै
देशे नै
विश्वो के
होवै कल्याण
सौंसे ठो
कविये भगमान
सृष्टि नें
देवोॅ के
दृष्टि नें
जेकरा में
पैलै छै
अदभुत विस्तार
सरंगोॅ भर प्यार।“
”आय वही
कवि सिनी
शहरे नै
गामोॅ के
जाति के
तंत्र-मंत्र
बाँचै छै
भूते रँ
नाचै छै
लोभ-लाभ
देखी केॅ
जाते में
सट्टै छै
ओकरे लेॅ
खट्टै छै
मंचोॅ पर
दुसरा के
जाति केॅ
गाली दै
अपना पर
ताली दै।“
”हेने तेॅ
आबेॅ छै
ऋषि कवि
गढ़ै छवि
मोने छै
कुत्सित तेॅ
रचतै की
हित ओकरा
जँचतै की।
जरियो नै
सोचै छै
धरती लेॅ
बचतै की।“
”टोला में
होलै की
कल्हे तेॅ
गामोॅ के
चारो ठो
कवि आरो
कथाकार
चारो दिश
होलै चार
जातिये के
नामोॅ पर
अपने घर
धामोॅ पर।“
”हद भेलै
कवि जौनें
लानै छै
अमृत केॅ
सब्भैं ई
मानै छै।
लानै जों
वही कविं
जहरोॅ केॅ
रचना में
जेकरा कि
पीयै छै
मानव-मन
धरती पर
जीयै छै
की होतै?“
”निर्मल रं
मानव-मन
पीतै तेॅ
जहरे केॅ
एक दिन ई
हेनोॅ रँ
कवि सिनी
खाय जैतै
गामे नै
शहरे केॅ।“
”भोर होलै
अइयो तेॅ
होने ही
लाल-लाल
सुरजोॅ के
किरिन गिरै
बालू पर
कोशी के
धारोॅ पर
धरती पर
ऐंगना में
छपरी पर
ड्योड़ी पर
गाछी पर
खेतोॅ पर
बारी पर
आरी पर।“
”लेकिन नै
होनोॅ, हौ
मन में उछाह
चाँदी स्याह
एक डोॅर
घोॅर-घोॅर
-कखनी ई
किरिन लाल
आरो लाल
होय जैतै
खूनो सें गाढ़ोॅ
द्वारी पर
होय जैतै
मिरतू ही ठाढ़ोॅ।“
”तखनी बस
लागै छै
भोरकोॅ ई
सूरज नै
राकस के
आँख रहेॅ
लाल किरिन
मिरत के
पाँख रहॅे।“
”आखिर ई
भय कैन्हें
देखै छी
गाँमोॅ के
रंगत अजीब
थरथर छै
बड़का सें
छोटका तक जीव
संरक्षक
छै भक्षक
जेना कि
सिरहानै
छै तक्षक।“
”अद्भुत छै
खेल यहाँ
रहलै नै
मेल यहाँ
सब्भे लेॅ
सब्भे जन
जेल यहाँ।“
”के जानै
कखनी के
छेवी लेॅ
प्राण यहाँ
देखोॅ लेॅ
देवी लेॅ
निरमोही
पंडित जन
मंत्र-तंत्र
बाँचै छै
सौंसे ठो
गामोॅ में
भूत-प्रेत
नाँचै छै।“
”थानोॅ के
देहरी सें
गामोॅ के
चौर तांय
जमलोॅ छै
लहू लाल
सतयुग के
माथा पर
कलयुग-काल।“
”राजनीति
राज के
अखाड़ा छै
छुट्टा सब
बानर के
भालू के
बाघोॅ के
बाड़ा छै
चेहरा पर
चेहरा छै
एक्के नै
सौ-सौ ठो सीमा
जखनी
जे चाहै छै
ओकरा दिखावै
सबकेॅ ओझरावै।“
”सपना ही
होय गेलै
गाँधी के
राम-राज
कोयल केॅ
धरलेॅ छै
चील-बाज
हहरै छै
मैना संग
सुग्गा-कबूतर
बहियारी
बारी में
काँपै छै पीपर
हाय डरै
याद करी
गौतम केॅ
लोर ढरै।
”होना तेॅ
अइयो भी
भोर हुऐ
चुनमुन-चुन
चिड़ियाँ के
शोर हुऐ
लेकिन कि
होनोॅ नै
तहिया तेॅ
गामोॅ के
ठामे-ठाम
पीपर के
बरगद के
पाकड़ के
जामुन के
आमोॅ के
कटहल के
महुआ के
कहुआ के
शीशम के
सखुआ के
आरो भी
देवदार
बेशुमार।“