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जाड़ा / तो हू
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आज रात लौटी है हवा पूर्वी समुद्र से
हेमन्त मे सुन्न धरती-आकाश
ठंड से अकड़े पहाड़ चारों ओर
जंगल थर-थर दूर
जेल के अहाते में खड़ा है पेड़ों का दल
पत्तियाँ और शाख जाड़े की उदासी में नत
रात की मुंड़ेर पर कुहनी टेके
सुन रहा हूँ सींखचों के पास हवा की खुर-खुर
न कम्बल, न दरी
कोठरी के बीचों-बीच अकेला
ख़ुद अपने से बतियाता-सुनता
तभी जगती है दोस्तों की तलब
चारों हवाओं को मेरा सलाम!
- (लाओ बाओ जेल)
- दिसम्बर 1940