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जाड़े की दोपहर / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
बैठे बैठे ही सो गयी है
आराम कुर्सी
सर्दियों की ज़र्द धूप में
खुली पड़ी है
किताब
जिस के औराक़
उलट पलट रही है
हवा
अलगनी पर अलसा रहे हैं कपड़े
पिछली सर्दियों के
कपूर की खुशबू में लिपटे