भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाड़े की दोपहर / शीन काफ़ निज़ाम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बैठे बैठे ही सो गयी है
आराम कुर्सी
सर्दियों की ज़र्द धूप में

खुली पड़ी है
किताब
जिस के औराक़
उलट पलट रही है
हवा


अलगनी पर अलसा रहे हैं कपड़े
पिछली सर्दियों के
कपूर की खुशबू में लिपटे