भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाड़े के दिन / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोटे पाँवों वाले दिन।
सर्द हवाओं वाले दिन।

कॉफी प्यालों वाले दिन।
गर्म दुशालों वाले दिन।

फ्रीजर में ज्यों डाले दिन।
खुले बदन पर भाले दिन।

कुहरा ओढ़े काले दिन।
कहाँ गए उजियाले दिन?