भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जान जायेगी दुनिया मेरी प्रीत को / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जान जायेगी दुनिया मेरी प्रीत को
कौन गाता है सुर में मेरे गीत को।

ये जो दुनिया है बैरी, चिता, शूल है
और यह प्यार मेरा कली-फूल है
जिसने चाहा हमेशा मेरी हार को
कैसे सह पायेगी वह मेरी जीत को !

प्यार मन का निवेदन है, संगीत है
झाल, झांझर, नगाड़े से भयभीत है
राग भैरव में कैसे इसे गाओगे
जानते ही नहीं देश की रीत को।

सबका मन तो नहीं होता कचनार का
मोल समझेगा क्या वो मेरे प्यार का
आँच पर न कहीं रख दे ये निर्दयी
काँच पर यह रखा मेरे नवनीत को।