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जानकी रामायण / भाग 20 / लाल दास

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चौपाई

एक दिस सीता रामक ध्यान। करयित रहथि वीर हनुमान॥
देखल कौतुक विधिध प्रकार। व्रजमे भेल विभुक अवतार॥
कृष्ण नाम अबतरला राम। जनकनन्दनी राधा वाम॥
तनि दशर््न बिनु हो नहि नीन। छटपट कर जल बिनु जनि मीन॥
चल अयला ब्रजमे ब्रजरंग। देखल कृष्ण राधिका संग॥
स्तुति नति कति विधि कयल प्रणाम। कहल इष्ट दरसन दिअ राम॥
हनुमानक लखि भक्ति विशेष। बनला सीता रामक बेष॥
कपिकेँ भक्त-शिरोमणि जानि। दर्शन देल राम गुणखानि॥
देखि-देखि सीता रामक रूप। कपिकाँ बाढ़ल हर्ष अनूप॥
परमानन्द मगन हनुमान। रहला बृन्दावन सज्ञान॥
राधा कृष्ण ततय नित जाय। राम रूप निज देथि देखाय॥
बृन्दावन सुखसौं हनुमान। बासा कयल बढ़ल बड़ मान॥
केवल रामक दरशन हेतु। बृन्दावन रहला कपिकेतु॥
तेहि अवसर ब्रजमे एक बार। मथुरासँ छल पड़ल हँकार॥
कंस बजाओल यज्ञक लाथ। ब्रजवासीकाँ कृष्णक साथ॥
रथ अक्रूर ततय लयलाह। वृन्दाविपिन जखन चललाह॥
बुझल पवनसुत सभ वृतान्त। हरि लय जयता मधुपुर प्रान्त॥
कपि युक्तिहि लांगूल बढ़ाय। अक्रूरक रथ देल बन्धाय॥
रथ नहि चलय भेल अतिकाल। विस्मित मन देखल ततकाल॥
तरु ऊपर बैसल कपि एक। अपन पुच्छसौं रथकेँ टेक॥

दोहा

रामभक्त हनुमानकैं चिन्हल सुजन अक्रूर।
सविनय कहल कृपा करिय समटि लिअ लंगूर॥

चौपाई

कहल पवनसुत सुनु अक्रूर। अहँ छी हरिजन मन नहि क्रूर॥
कंसक प्रेषित रथ ई देखि। मनमे संशय बढ़ल अलेखि॥
दशमुख लायल रथ सुविशेष। सीता हरलक साधुक वेष॥
तनिक दशो सिर काटल गेल। सीता हरणक फल भल भेल॥
सैह जानकी पुनि खिसिआय। सहसवदनकाँ मारल जाय॥
जे सहसानन दशमुख मार। सैह थिकथि राधा अवतार॥
सैह राम कृष्णक तन धयल। तनिक हरिण हित ई रथ अयल॥
के ई क्षुद्र एकशिर कंस। एहिखन तकर करब हम ध्वंस॥
कि करत मधुपुर हरि मंगबाय। शुद्ध कहू अक्रूर बुझाय॥
कहल सत्य सुनु हे हनुमान। कंसक मन कृष्णक लेब प्रान॥
हमरा कहल अहाँ ब्रज जाउ। नन्दक सुतकेँ आनि देखाउ॥
से सुनि हमरा भेल अति खेद। नारद कहल तखन किछ भेद॥
कंस मरत अब कृष्णक हाथ। जाउ लाउ ब्रजनाथहि साथ॥
वसुदेवक बंदी छोड़बाउ। सुर नर मुनिक त्राण करबाउ॥
तखन भेल हमरा विश्वास। अयलहुँ कय मनमे बड़ आश॥

दोहा

हरि दरसन बिनु विकल मन कपि जनु रोकल जाय।
छोड़ि दिअ हम कृष्णकाँ लायब रथ बैसाय॥

चौपाई

भक्त शिरोमणि पवनकुमार। अहँ सन क्यो नहि एहि संसार॥
सीता-रामक तन्मय देह। अहिँक हृदयमे तनिकर गेह॥
बाहर भीतर अस्थि प्रजन्त। राम नाम अंकित अछि सन्त॥
लक्ष्मण मन छल संशय भेल। साहस कय सहसा हरि लेल॥
निज नखसौं निज हृदय बिदारि। देल देखाय सकल भय टारि॥
धु्रव नारद प्रह्लाद प्रधान। भक्तशिरोमणि के नहि जान॥
तनिकहु उर नहि अंकित नाम। अहिँक भक्तिवश सीताराम॥
कृष्णक महिमा कंसक मरण। जनितहि छी कपि संकटहरण॥
छोड़ि दिअ जनु करिय विलम्ब। कृष्ण हमर प्राणक अवलम्ब॥
सुनि आनन्द भेला हनुमान। जानल ई बड़ भक्त प्रधान॥
रथसौं खोलि देल लंगूर। पुनि प्रमुदित चलला अक्रूर॥

दोहा

एतय कयल जे जे चरित वृन्दावन युदवीर।
कहयित छी गोपित कथा सुनु मुनि ज्ञान गम्भीर॥

चौपाई

वृन्दावन शुभ कुंज कुटीर। सुतल रहथि राधा यदुवीर॥
रतिश्रमजनित सुनिद्रा बाढ़। राधा स्वप्न देखल तहँ गाढ़॥
पूर्व जतेक आयल छल चार। सभकाँ कृष्ण कयल संहार॥
तखन कंस एक वैष्णव दूत। ब्रजहि पठाओल अति अजगूत॥
अपन हाथ से कृष्णक माथ। राखल विवश भेला यदुनाथ॥
घुमल फिरथि से तनिकहि संग। ब्रज जन सभक प्रीति भेल भंग॥
तखनहि संग कृष्णकाँ लेल। रथ चढ़ाय मथुरा लय गेल॥
उठली स्वप्न अमंगल देखि। संकित सचकित दुखित अलेखि॥
व्याकुल बिरहेँ बाढ़ल त्रास। लागल बहय श्वास उच्छ्वास॥
तेहि पर फरकय दहिना नयन। दहिन भुजा पुनि असगुन अयन॥
व्याकुलि बैसलिह राधा रानि। धुकधुक छाती उठलिह कानि॥
उठला चकित कृष्ण ततकाल। बजला कहु अहँ किअय बिहाल॥
राधा कनयित सभटा कहल। अहँक विरह स्वपनहु नहि सहल॥
जौं अहँ कतहु करब प्रस्थान। अहिँक संग चल जायत प्रान॥

दोहा

कहल कृष्ण अहँ धीर धरु मन जनु करो उदास।
देव-काज करबाक अछि सत्य स्वप्न निर्य्यास॥

चौपाई

बुझले अछि पूर्वक वृत्तान्त। प्राणप्रिये मनकेँ करु शान्त॥
अहिँ छी परमा प्रकृति प्रधान। जीवन हमर अहोँ छीत प्रान॥
अहिँ छी सष्टिक मूलाधार। अहिँ सभ प्राणिक प्राणाधार॥
अहीँ महालक्ष्मी साक्षात। पालन काज अहिँक प्रख्यात॥
नहि हमरा अछि अहँक वियोग। बनले रहय सदा संयोग॥
शक्तिक बलसौं विजय सदाय। हम जीतल दानव-समुदाय॥
जतय रहब जायब जेहि देश। नहि वियोग अहँसौं लवलेश॥
हम अहँमे अहुँ मोर उर बास। तेँ कहयिछ जग रमानिवास॥
वृथा करी मनमे जनु खेद। नहि हमरा अहँमे किछ भेद॥
करितहि रहब हमर नित ध्यान। हमर मिलन सुख सैह प्रमान॥
एहि विधि कति प्रबोध हरि कयल। तखन राधिका धैरज धयल॥
राखि मनहि मन कृष्णक मूर्त्ति। लगली करय मनोरथ पूर्त्ति॥

दोहा

राधाकाँ बोधितहि ततय भेल निशा अवसान।
बृन्दाविपिन निकुंजमे सुनि पक्षीकृत गान॥