भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जानी छज्जै तै ईंट गिरी होती / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जानी छज्जै तै ईंट गिरी होती
मेरी बच गई ज्यान मरी होती
जानी तुम तो फिरी किन सैलां नै
मेरी भरीए जिवानी थारे महलां मैं
घोड़ै के आगे खूंटी नहीं
परदेसी बालम की छुट्टी नहीं
ज्यानी घोड़ै कै आगै दाणा नहीं
परदेसी बालम का आणा नहीं
ज्यानी घोड़ै कै आगै घास नहीं
परदेसी बालम की आस नहीं
ज्यानी कल्ले दुकल्ले मत आया करो
यारों की जोड़ी ल्याया करो
ज्यानी धूप पड़ै जद आया करो
यारों की जोड़ी ल्याया करो
ज्यानी रीता रूमाल मत ल्याया करो
मथरा के पेड़े थम ल्याया करो