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जाले / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
दिल के बाहर
मकड़ी बुनती जाले
पूछे बिना हमारे,
हमें हटाने पड़ते जाले
बाहर लगे हमारे
दिल के भीतर
उलझन बुनती जाले,
देखे बिना हमारे,
हमें हटाने पड़ते जाले
भीतर लगे हमारे
रचनाकाल: १७-०६-१९७६, मद्रास