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जावक लिलार ओँठ अँजन की लीक सोहै / मतिराम

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जावक लिलार ओँठ अँजन की लीक सोहै ,
खैये न अलीक लोक लीक न बिसारिए ।
कवि मतिराम छाती नख छत जगमगै ,
डगमगै पग सूधे मग मैँ न धारिए ।
कसकै उफारत हौ पलक पलक यातैँ ,
पलका पे पौढ़ि श्रम राति को निवारिए ।
अटपटे बैन मुख बात न कहत बनै ,
लटपटे पेँच सिर पाग के सुधारिए ॥


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।