भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाहिर है, तुम कल रात / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
जाहिर है, तुम कल रात यहीं पर थे,
हरियाली पर पद-चिह्न तुम्हारे हैं;
तारों के फूल बिछे थे, सो अब तक
हो रहे सजल शबनमी किनारे हैं;
रस-बस बेबस जो रहे नयन-बन्दी,
खुल रहे कमल में वही इशारे हैं;
वन के जीवन में यों जो आग लगी,
पानी में फूट रहे अंगारे हैं!