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जिंदगी / हरीश बी० शर्मा

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जीवन को धूप-छांव का
सहकार कहो
या
दाना चुगती चिड़ियों के साथ
नादां का व्यवहार
पागल के हाथ पड़ी माचिस-सी होती है जिंदगी
दीवाली की लापसी ईद की सिवइंया
क्रिसमस ट्री पर सजे चॉकलेट्स से
बहुत मीठी होती है जिंदगी
जिसे पीना पड़ता है
लेकिन सुधी पाठक ज्यादा माथा नहीं दूखाते
किताब बंद करते होते हैं
जब समाप्त लिखा आता है।