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जिंद़गी मय नहीं / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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जिंद़गी मय नहीं, साक़ी भी नहीं, जाम नहीं

जिंद़गी होश का आग़ाज़ है, अंजाम नहीं


सिर उठाने को कोई भोर न कोई सूरज

सिर छुपाने को कोई चाँद, कोई शाम नहीं


सुर्खरू होने की ख्व़ाहिश में कहाँ से गुज़रें

राह में कौन-सी मंज़िल है जो बदनाम नहीं


देखे हैं दोस्त की सूरत में ही अक्सर दुश्मन

अब मुनासिब किसी रिश्ते का कोई नाम नहीं


हार कर जीते हैं, और जीत के भी हार गये

कामयाबी नहीं कोई कि जो नाकाम नहीं


ख़ास लोगों पे ही होती है मेहरबान पराग

जिंद़गी चैन दे सब को, ये चलन आम नहीं