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जिज़यः / परवीन शाकिर
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जिज़यः<ref>टैक्स</ref>
गुड़िया-सी ये लड़की
जिसकी उजली हँसी से
मेरा आँगन दमक रहा है
कल जब सात समंदर पार चली जाएगी
और साहिली शहर के सुर्ख़ छतों वाले घर के अंदर
पूरे चाँद की रोशनी बनकर बिखरेगी
हम सब इसको याद करेंगे
और अपने अश्कों के सच्चे मोतियों से
सारी उम्र
इक ऐसा सूद उतारते जाएँगे
जिसका अस्ल भी हम पर कर्ज़ नहीं था !
शब्दार्थ
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