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जिजीविषा / शैलप्रिया

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लहर
पुनः आओ
मेरे मन को गढ़ो
सतरंगे इंद्रधनुष-सा
अनचाहे
थाम तुम्हें
पकड़ भर लूँ

उफ़नती नदी
कई रंगों से भर
मेरे शुष्क होठों पर
तिरती है
एक ख़ुशी की लहर