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जिद्दी बिन्नो / निधि अग्रवाल

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1
बिन्नो आज पकड़े थी सुबह से जिद
अम्मा मैं मेला जाऊँगी,
अम्मा के सिर पर है कामों का मेला
पिता गए हैं खेतों में,
कौन ले जाए बिन्नो को मेला?
बिन्नो खाना नहीं खाती,
बैठी है द्वारे मुँह फुलाए।

आए हैं पड़ोस के बुल्ली चाचा
बोले, काहे नहीं चहक रही चिड़िया मेरी,
जिद्दी हो गई है... मेला जाना है,
सानी सने हाथों से अम्मा बोली।

इतनी--सी बात! बोलो बिन्नो?
चाचा के काँधे चढ़ चलोगी मेले?
बिन्नो के पर उग आए
बोली, “बाल बाँध दो अम्मा”
अम्मा ने चोटी कर बाँध दिए
लाल रिबन के बड़े फूल।

मेले से लौटी है बिन्नो
लेकर कुछ खिलौने और मिठाई
बालों के फूल मुरझाए हैं
अब बिन्नो कभी ज़िद नहीं करती।

2
बदल रहा है लल्ली का गाँव,
लल्ली भी जाती है अब
भाई के साथ स्कूल,
करती है अंग्रेज़ी में दिनभर गिटपिट,
लल्ली है कक्षा में सबसे होनहार
कहते हैं अंग्रेज़ी के मास्टर जी।

चिड़िया कढ़ा बस्ता झुलाते
जाते हुए लल्ली कहती है-
“माँ तू देख लेना
मैं जिले में अव्वल आऊँगी।
मास्टर जी ने बुलाया है घर
पढ़ाने कुछ ज़रूरी पाठ।”
लौटने पर बस्ते पर है
परकतरी चिड़िया,
लल्ली तबसे गुमसुम है रहती
न अंग्रेज़ी और न ही हिन्दी में
वह अब कुछ कहती है।


3
स्कूटर, कार, बाइक चलाती प्रीता
नहीं पहनती सूट- सलवार
झट ला देती है
दादी की जोड़ों की दवा,
दादा के लिए पान- बहार
ऊँची एड़ी की चप्पल में
ठक-ठक शोर मचाती
अपने चार दोस्तों संग
जन्मदिन मनाने गई प्रीता,
अपनी गाड़ी से नहीं लौटी,
दो दिन बाद रात अँधियारे में
भैया और पापा थाने से लाए
नंगे पाँव लंगड़ाती प्रीता को।
ऊँची एड़ी की चप्पल जाने कहाँ छूटी?
अब नहीं जाती प्रीता कभी बाहर,
प्रीता अब जन्मदिन भी नहीं मनाती।

4
सरला थी घर भर की लाडो,
चहकती सुबह से शाम
भरे पूरे घर में,
खेल-खिलौने में डूबे
बचपन के कुछ खेल
छोड़ गए हैं उसके मन पर
कुछ ऐसे स्याह निशान।
अपनी बिटिया के लिए
सरला रहती है अब हर पल चिंतित,
बिटिया झुंझलाती है और
तुतलाते हुए कहती है-
“माँ, तू मुझे किसी भी भैया संग
खेलने क्यों नहीं देती?”

5
आज बिन्नो ने ज़िद पकड़ी
सच कहने की,
आज प्रीता घर से फिर बाहर निकली,
आज फिर लल्ली ने हिम्मत की,
चुनमुन बन कड़वा बोली।
कुछ बोले चुनमुन को सच्चा,
कुछ ने कहा चुनमुन को झूठ
प्रश्न यह कि,
हम कितनी चुनमुन ठुकराएँगे
घर-घर एक चुनमुन रहती है।