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जिधर घूमता हूँ / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
'मेरी हत्या तय है एक दिन'
ये मेरी नहीं हत्यारे की घोषणा थी
जो कि उसने मेरी निर्मम आलोचनाओं
के बीच की थी और कही थी
जिधर भी घूमता हूं
दिखते हैं हत्यारे
उस सोलह साल की लड़की के सपने में
गुमशुदा लोगों के आसपास
उनके द्वारा फ़ैसला सुनाए जाते समय में
इस पूरी सत्ता में
और पूरे मुल्क में छाए हैं वो
तिलचट्टों की मानिंद
ये हमारे आर्यावर्त की पटकथा है
जबकि उस बच्ची को पता नहीं है
कि हत्यारे होते क्या हैं
मिट्टी के खिलौने से खेलते मेरे बेटे को भी
मालूम नहीं है
कि हत्यारे होते क्या हैं
न उन बच्चों को पता है हत्यारे के बारे में
कुछ भी
जो कि दंगों के बाद शिविरों में रह रहे हैं
जबकि व्याकुल हत्यारा
घर-घर बौखता है
किसी की भी हत्या कर देने के लिए हत्या तय है एक दिन'