भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिनगी / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
लड़कपन में
बतावल गेल
जीवन अनमोल हे
एकरा सहेजय / सजावय के चाहिए।
स्कूलों / काउलेजो में
जिनगी के महातम पढ़ावल गेल
आदमी के जनम
एगो वरदान हे दाता के।
आदमी के चाहिए कि
एकरा सुन्नर बनावे/
ढंग से सँवारे।
बड़ी जुगुत-जतन से
उमरो भर / जीवन के
सजावय /सँवारय के
कोरसिस कइलूँ।
मुदा पइलूँ कि जिनगी
धागा के ओझरल
लरछी जइसन हे
सोझरावइत-सोझरावइत
उमर गुजर गेल।