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जिन्दगी और याद / ओम व्यास
Kavita Kosh से
जिन्दगी
से पीछे छूटती तारीखें
गीली रेत पर पैरों के निशान सी
छोड़ देती है कुछ यादें।
यादें...
जो बिसरती जाती है कुछ
समय चक्र के चलते,
कुछ
बड़ी घटनाओं के तले,
और कुछ
मजबूरन मिटा देता है
आदमी
अंजाम न दे पाने पर
पर फिर भी
चहरे की झुरियों को बटोरे
गठरी सा पड़ा होता है वह
चारपाई पर जब
एक पहाड़ का
अहसास करता है,
छोटी बड़ी, खट्टी मीठी
यादों का पहाड़
जिन्दगी का पूरा सफ़र
यादों का काफिला
संग संग
शुरूआत से खात्मे तक