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जिया जरी गेलै / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
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सहेली-: पिया हमरोॅ गेलै बजरिया हे, जिया जरी गेलै हमार।

सहेली-: पिया हमरोॅ गेलै शहरिया हे, जिया हरसै हमार॥

सहेली-: सासू लेॅ साड़ी, ननदोॅ लेॅ लहंगा।
हमरा लेॅ आनलक सिलोठवा हे, जिया जरी गेलै हमार।

सहेली-: साड़ी तेॅ छुटी गेलै, लहंगा तेॅ फटी गेलै
लिखी-लिखी आपनों सिलोठवा में, जिया हरसै हमार।

सहेली-: सासु लेॅ बाली, ननदोॅ लेॅ नथुनी
हमरा लेॅ काॅपी कलमियाँ हे, जिया जरी गेलै हमार।

सहेली-: बाली बिलाय गेलै, नथुनी हेराय गेलै
काॅपी में लिखी कलमियाँ सेॅ, जिया हरसै हमार।

सहेली-: सासु लेॅ खीरा, ननदी लेॅ बतिया
हमरा लेॅ आनलक कितबिया हे, जिया जरी गेलै हमार।

सहेली-: खीरा खराय गेलै, बतिया बताय गेलै
पढ़ी-पढ़ी आपनोॅ कितबिया हे, जिया हरसै हमार।

सहेली-: सास गेलै सहरसा, ननदी पुरैनिया
हमरा भेजै साक्षरता अभियान मेॅ, जिया जरी गेलै हमार।

सहेली-: सास गेलै नैहरा, ननद ससुररिया
पढ़ी-लिखी साक्षरता अभियान मेॅ, जिया हरसै हमार