भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिस घर में नहीं सुनाई, बात है बेकार पिया / प.रघुनाथ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस घर में नहीं सुनाई, बात है बेकार पिया,
मान चाहे मत मान, मेरा है इन्कार पिया ।।टेक।।

मेरा गम से भर गया सीना, घना काम जुवे का हीना,
दुनियां के मांह जीना, दिन चार है पिया।।1।।

मेरी अखियां भरी नीर की, लात मत मारे थाली खीर की,
जिस घर में मर्द बीर की, तकरार है पिया।।2।।

समय बुराई ले लोगे, तन पै सब कुछ झेलोगे,
जो आज जुवा खेलोगे, तो थारी हार है पिया।।3।।

के मिले बुराई पाने में, रघुनाथ सहम मुंह बाने में.
ज्ञान कथा के गाने में, मानसिंह सार है पिया।।4।।