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जिस दम खुशियों से मिलने सब ग़म जाते हैं / संकल्प शर्मा

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जिस दम खुशियों से मिलने सब ग़म जाते हैं,
एक ऐसे मंज़र को देखने हम जाते हैं।
 
कितने दिलकश नाम हैं फ़िर भी ना जाने क्यूँ,
उसके नाम पे आकर सारे थम जाते हैं।

रोज़ नसीम ऐ सहर<ref>सुबह की ठंडी हवा</ref> उसे लेने आती है,
घर पहुँचाने शाम को सब मौसम जाते हैं।

कुछ सदमे ऐसे भी गज़रते हैं जब अपनी,
आँखें पथराती हैं आँसू जम जाते हैं।
 
लफ्ज- लफ्ज़ जो ज़ख़्म लगे गहरा होता है,
जिसकी रफ़ू में रायगाँ<ref>व्यर्थ, बेकार</ref> सब मरहम जाते हैं।

शब्दार्थ
<references/>