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जिस ने भी दास्ताँ लिखी होगी / शाइस्ता यूसुफ़
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जिस ने भी दास्ताँ लिखी होगी
कुछ तो सच्चाई भी रही होगी
क्यूँ मिरे दर्द को यक़ीं है बहुत
तेरी आँखों में भी नमी होगी
क्या करूँ दूसरे जन्म का मैं
ज़िंदगी कल भी अजनबी होगी
कितनी अंधी है आरजू मेरी
क्या कभी इस में रौशनी होगी
कैद से हो चुकी हूँ फिर आज़ाद
जाने किस ने गवाही दी होगी