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जिसको सबने अच्छा समझा / हरि फ़ैज़ाबादी
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जिसको सबने अच्छा समझा
उत्तर था वह सोचा समझा
मुझसे कितनी भूल हुई जो
तोते को बस तोता समझा
क्या कहती हैं बूढ़ी आँखें
घर में केवल पोता समझा
हैरत है अधखिले फूल को
माली ने भी काँटा समझा
भरा अभी कश्कोल नहीं है
रात हुई तब अंधा समझा
कोशिश औरों ने भी की, पर
ग़म बहरे का गूँगा समझा
शायद मैंने ठीक किया जो
दुनिया को बस दुनिया समझा