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जिसे कल तक / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
उसे रोज़ जाते
देखते थे सब
एकदम चुप
रास्ते के अलावा
देखती न थी कुछ और
लौटी जब आज
हाथ में एक डिग्री
आज वह नहीं थी वही
जिसे कल तक सबने
जाते देखा था