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जिस्म ही ज़िंदा है / अशेष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
जिस्म ही ज़िंदा है
रूह मर चुकी है
नावाक़िफे हक़ीक़त हैं
तेरे शहर के लोग...
दिलो जान से लगे हैं
औरों को जानने में
हैं ख़ुद से बेखबर
तेरे शहर के लोग...
जानता हूँ कि जुदाई है
हर मिलन का अंजाम
मिलने की बात क्यों करते हैं
तेरे शहर के लोग...
मुँह से दुआएँ देते दिल में
छुरी चलाते
होते कुछ, दिखते कुछ
तेरे शहर के लोग...
तुम किसी राह में मिलना नहीं
मुझसे ऐ दोस्त
अंधा एक मोड़ हूँ कहते हैं
तेरे शहर के लोग...