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जीऊँगा बिना हमदम कैसे / कैलाश झा 'किंकर'
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जीऊँगा बिना हमदम कैसे
मुश्किल को करूँगा कम कैसे।
खुशियों के मिले अवसर फिर भी
आँखें हैं तुम्हारी नम कैसे।
है तेल अदद बाती साथी
पर दीप हुआ मद्धम कैसे।
खुशियाँ हैं पलक में गुम तेरी
रखते हो निरन्तर ग़म कैसे।
आतंक तुम्हारा है तारी
साँसों के बजे सरगम कैसे।
हक़ मार रहे हैं सबके सब
मैं और रखूँ संयम कैसे।