भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीतू बगडवाल / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पैठीगे<ref>चल पड़ा</ref> तब जीतू, बैणी<ref>बहन</ref> का गऊँ<ref>गाँव</ref>,
राणी पटूड्या तब, तैकी<ref>उसकी</ref> गाली देन्दी।
जाँदू होई मेरा स्वामी, औंदू ना होई,

स्याली<ref>साली</ref> का खातर तू, पैटी वैणी बैदोण<ref>बुलाने</ref>!
विदा लिने जीतून, रस्ता लगे वो,
चल्दू रै वो ऊँची तौं घैड़ियों<ref>चोटियाँ</ref>,
ऊँची घैड़ियों चढ़े जीतू गैरी<ref>गहरी</ref> त पाख्यों<ref>घाटियाँ</ref>,
कलबली<ref>सुन्दर</ref> कुलै<ref>चीड़</ref> छै वख, देउदार छा स्वाणा,
हँया डाँला छा, फूलून जना ढक्याँ!
पौंछी गये जीतू, रैथल<ref>एक जगह</ref> की थाती,
घड़ांदी<ref>तपती</ref> दोफरी छई, तढांदो<ref>कड़ी</ref> घाम,
तड़ांदा घाम मा, जीतू सेल<ref>छाया</ref> बैठोगे।
तमाखू पीयाले तैन, साध्यान<ref>आराम</ref> लीयाले,
हौंस्यारी<ref>भावुक</ref> पराण वेो, उलारिया<ref>मस्त</ref> गए।
हाथ गाडयाले<ref>निकाल दी</ref> वैन<ref>उसने</ref>, नौसुर<ref>नौ स्वरवाली</ref> मुरली,
नौसुर मुरली धरे, धावड़या बाँसुली।
बावरो छयो जीतू, उलारिया ज्वान<ref>जवान</ref>,
मुरली को हौंसिया छयो, रूप् को रौंसिया।
घुराये<ref>बजायी</ref> मुरली वैन, डाँडी<ref>पहाड़ियाँ</ref> बीजीन<ref>जाग गयी</ref> काँठी<ref>चोटियाँ</ref>,
वणा का मिरगून, चरणू छोड़ी दिने,
पंछियोंन छोड़ी दिने, मुख को त गालो।
कु होल चुचों स्यो, धावडया<ref>मोहक</ref> मुरल्या<ref>मुरलीवाला</ref>,
तैकी मुरली मा क्या, मोहनी होली।
बिजी गैन बिजी, खैट की आछरी<ref>अप्सराएँ</ref>,
जीतू की आँख्यों मा, जनो शीशो<ref>दर्पण</ref> चमलाणी<ref>चमका</ref>।
छमछम घूँघर बजीन, जीतू की आँखी मुंजीन<ref>मुँद गयी</ref>,
क्वी बैणी बैठीन, आँख्यों का स्वर,

क्वी बैणी बैठीन, कन्दूड्यों<ref>कान</ref> का घर।
छालो पिने लोई<ref>खून</ref>, आलो खाये मास पिंड,
पन्द्र<ref>जवानी</ref> पचीसी जीतू, रैंथल थाती रैगे।
अख्हर जवानी जीतू, भुंचण<ref>भोगने</ref> नी पायो।
तिन नी माणो जीतू, माता की अड़ैती<ref>कहना</ref>,
फँसी गए कनो, आछन्यों का घेरा।
सुमिरण करदो जीतू बगूड़ी भैंरो<ref>भैरव</ref>,
कख हैवैली मेरी, कुलदेवी भवानी?
आज मैं पर ऐगी, विपदा भारी,
बीच बाटा मा कनी होये, मेरी मोल<ref>गोबर</ref> की मरास<ref>ढेर</ref>।
दैणो<ref>सहायक</ref> ह्वैगे तब, जीतू को बगूड़ी भैरों,
नौ वैणी आछरी तब, छूटी गैन।
तब जीतून ऊँ देन्दु, दिन्या धरम<ref>वचन</ref>-
आज मैं जाँदू बैणी वैदोण,
छै गते आषाढ़ लंगला को दिन।
तै दिन तुम मेरी, तैं मोल पुंगड़ी आन।
तब मन ह्वैगे उदास, जीतू,
चित्त ह्वैगे चंचल।
तब पौंछी गए जीतू, बैणी का गऊँ
मिली गये वीं बैणी शोभनी।
तब आये वा, स्याली<ref>साली</ref> त वरुणा।
सेवा मेरी पौंछे, वीं स्याली वरुणा
सेवा मैं खरी लाँदूँ, भैना<ref>जीजा</ref> बगीड्वाल।
तेरी खातर छोड़े, स्याली बाँकी बगूड़ी,
बांकी बगूड़ी छोड़े, राण्यों की दगूड़ी<ref>साथ</ref>।
छतीसू कुटुम्ब छोड्यो, बतीसू परिवार
घिटुड़ियों<ref>गौरय्या</ref>जसो रत्थ<ref>झुंड</ref> छोड़े, चकौरू जसी टोली।

तेरा बाना<ref>लिए</ref> छौड़े मैन भैना-
दिन को खाणो, रात की सेणो।
तेरी माया<ref>प्रेम</ref> न स्यालीं, जिकूड़ी<ref>हृदय</ref> लपेटीं,
कोरी-कोरी खाँदो, तेरी माया को मुंडारो<ref>सिरदर्द</ref>।
जिकुड़ी कौ त्वै<ref>खून</ref>, पिलैक अपणी
परौसणू<ref>सींच रहा, पालना</ref> छौं तेरी, माया की डाली।
अब त मरीक ही, मिटलो स्याली,
त्वै<ref>तेरे से</ref> मेंजे को हेत<ref>प्रेम</ref>।
यू डाँड्यूँ मा तेरी, फूल फूलला,
झपन्याली होली बुराँस डाली।
रितु बौड़ी औली, दाँई जसो<ref>जैसे</ref> पेरो,
पर तेरी मेरी भेंट स्याली,
कु जाणी<ref>कौन जाने</ref> हौंदी कि नी होंदी?
बौड़ीक ऐ गए जितू, तैं बाँकी बगूड़ी,
ओडूं<ref>जल्दी-जल्दी</ref> नेडूं ऐगे, लुंगला को दिन,
घटू की रिगाई ह्वैगे, सामल<ref>सामान</ref> की पिसाई।
चौखम्भ्या तिवारी जितू, होये मंगलाचार।
मुड़ायूं<ref>मीठा</ref> गुड़ाखू<ref>तम्बाकू</ref> पैट्यो<ref>रखा</ref>, घुंघरियालो<ref>घूंघरवाला</ref> होका<ref>हुक्का</ref>,
पौंछी गए बल्दू की जोड़ी, मलारी<ref>एक जगह</ref> का सेरा<ref>खेत</ref>,
तब जोतेण लैग्या जीतू, का घौला<ref>बैलों का नाम</ref> त बुल्ला<ref>बैलों का नाम</ref>।
मलारी का सेरा, शुरू होइगे रोपण,
सेरू सैंक ऐगे तैं, मोल पुँगड़ी।
एक फाट उंडो लीगे, जीतू एक फाट फुंडो,
फीकू ह्वै गए ज्यू, जीतू जी को।
तबे<ref>तभी</ref>, वीं मोल पुंगड़ी<ref>खेत</ref> छुटे घेंटुडी<ref>उड़ता</ref> रथ,

मलेऊ<ref>एक पक्षी</ref> सी भिड़को<ref>स्वर</ref>।
नौ बैणी आछरी<ref>अप्सराएँ</ref> ऐन बार वैणी भराड़ी<ref>यक्षणियाँ</ref>,
क्वी बैणी बैठीन, कन्दूडयों का घर,
क्वी बैणी बैठीन, आंख्यों का स्वर।
छालो पिने लोई आलो खाये मासपिण्ड।
अगुंडो छयो जीतू, पछिडू फरकी,
स्यूँ <ref>सहित</ref> बल्दू जोड़ी जीतू, डूबी गए,
मलारी का सेरा, जीतू खोई गए।
अल्हर जवानी जीतू, मुंचण<ref>भोगने</ref> नो पाए,
लाखडू<ref>लकड़ी</ref> सी ताबू<ref>लिया</ref> होये, पिंडालू-सी भाड़
बत्तीसू कुटुम्ब तेरो, तै मलारी सेरा रैगे,
बावरो नी होन्दू जीतू, नी होन्दू विणास<ref>विनाश</ref>।

शब्दार्थ
<references/>